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क्षेत्रा॑दपश्यं सनु॒तश्चर॑न्तं सु॒मद्यू॒थं न पु॒रु शोभ॑मानम्। न ता अ॑गृभ्र॒न्नज॑निष्ट॒ हि षः पलि॑क्नी॒रिद्यु॑व॒तयो॑ भवन्ति ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kṣetrād apaśyaṁ sanutaś carantaṁ sumad yūthaṁ na puru śobhamānam | na tā agṛbhrann ajaniṣṭa hi ṣaḥ paliknīr id yuvatayo bhavanti ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क्षेत्रा॑त्। अ॒प॒श्य॒म्। स॒नु॒तरिति॑। चर॑न्तम्। सु॒ऽमत्। यू॒थम्। न। पु॒रु। शोभ॑मानम्। न। ताः। अ॒गृ॒भ्र॒न्। अज॑निष्ट। हि। सः। पलि॑क्नीः। इत्। यु॒व॒तयः॑। भ॒व॒न्ति॒ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:2» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:14» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विवाहसम्बन्धी सन्तानविषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो मैं जिस (क्षेत्रात्) संस्कार की हुई स्त्री से उत्पन्न (चरन्तम्) व्यवहार करते हुए (सुमत्) आप ही (पुरु) बहुत (शोभमानम्) शोभायुक्त के (न) समान वा (यूथम्) सेनासमूह के (न) समान बलिष्ठ को (सनुतः) सनातन से (अपश्यम्) देखता हूँ (सः) वह सुखी (अजनिष्ट) होता है और जो ब्रह्मचारिणी कन्यायें उत्तम नियमोंवाली हुई युवावस्था के प्रथम पतियों को (अगृभ्रन्) ग्रहण करती हैं (ताः) वे (हि) ही (युवतयः) युवति हुईं पुत्र पौत्रों के अतिसुख के युक्त (इत्) और (पलिक्नीः) श्वेत केशोंवाली अर्थात् वृद्धावस्थायुक्त (भवन्ति) होती हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! यदि आप लोग अपने सन्तानों को अतिकाल पर्यन्त ब्रह्मचर्य्य करावें तो वे धर्मिष्ठ बुद्धियुक्त और चिरञ्जीवी हुए आप लोगों के लिये अतीव सुख देवें ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विवाहसम्बन्धिसन्तानविषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यद्यहं यं क्षेत्राज्जातं चरन्तं सुमत् पुरु शोभमानं न यूथं न बलिष्ठं सनुतोऽपश्यं स सुख्यजनिष्ट या ब्रह्मचारिण्यः कन्याः सुनियमाः सत्यो युवावस्थायाः प्राक् पतीनगृभ्रँस्ता हि युवतयः पुत्रपौत्रातिसुखयुक्ता इत् पलिक्नीर्भवन्ति ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (क्षेत्रात्) संस्कृताया भार्यायाः (अपश्यम्) पश्यामि (सनुतः) सनातनात् (चरन्तम्) व्यवहरन्तम् (सुमत्) स्वयमेव (यूथम्) सेनासमूहम् (न) इव (पुरु) बहु (शोभमानम्) (न) (ताः) (अगृभ्रन्) गृह्णन्ति (अजनिष्ट) जायते (हि) (सः) (पलिक्नीः) श्वेतकेशाः (इत्) एव (युवतयः) (भवन्ति) ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यदि भवन्तः स्वसन्तानान् दीर्घं ब्रह्मचर्य्यं कारयेयुस्तर्हि ते धर्मिष्ठाः प्रज्ञायुक्ताश्चिरञ्जीविनः सन्तो युष्मभ्यमतीव सुखं प्रयच्छेयुः ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थ -या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जर तुम्ही आपल्या संतानांना दीर्घकालपर्यंत ब्रह्मचर्य पाळण्यास शिकविले तर ते धार्मिक बुद्धिमान व दीर्घायू बनून तुम्हाला अत्यंत सुख देतील. ॥ ४ ॥